टिकाऊ निर्माण के लिए नए रास्ते बनाना

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March 29, 2024
कार्बन पृथक्करण के दौरान विकसित 3डी प्रिंटेबल सामग्री के छिद्रों और बल्क मैट्रिक्स में कार्बोनेट खनिजों का निर्माण। क्रिस्टल
3- 5 माइक्रोमीटर आकार के होते हैं और इस प्रकार सामग्री मैट्रिक्स को सघन बनाते हैं (चित्रः MatERIAL ग्रुप, सीएसटी, आईआईएससी)

निर्माण क्षेत्र आज कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। प्राकृतिक रेत तेजी से एक दुर्लभ संसाधन बनती जा रही है– 2050 तक यह खत्म हो सकती है ।  कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, विशेष रूप से सीमेंट या पकी हुई मिट्टी की ईंटों के निर्माण से, हर साल बढ़ रहा है। निर्माण और विध्वंस ( सीएंडडी) कचरे की मात्रा बढ़ रही है– भारत में सालाना लगभग 150 मिलियन टन उत्पन्न होता है और पुनर्चक्रण दर केवल लगभग1% है

ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए, आईआईएससी (IISc) के सेंटर फॉर सस्टेनेबल टेक्नोलॉजीज (सीएसटी) के शोधकर्ता औद्योगिक फ्लू गैस से कार्बन डाइऑक्साइड को खोदी गई मिट्टी और सीएंडडी कचरे में संग्रहीत करने के तरीके खोज रहे हैं। इन सामग्रियों का उपयोग आंशिक रूप से प्राकृतिक रेत की जगह लेने के लिए किया जा सकता है। इससे न केवल निर्माण सामग्री के पर्यावरणीय प्रभाव को कम किया जा सकेगा, बल्कि ऐसे गुण भी मिलेंगे जो निर्माण के लिए उनके उपयोग को बढ़ा सकते हैं।

सीएसटी में सहायक प्रोफेसर सौरदीप गुप्ता, जिनकी प्रयोगशाला में ये सारे अध्ययन हो रहे हैं, बताते हैं कि, “कम कार्बन वाले पूर्वनिर्मित भवन उत्पादों के निर्माण के लिए CO2 का प्रयोग और पृथक्करण एक मापनीय और व्यवहार्य तकनीक हो सकती है, जबकि इसे देश के विकार्बनन लक्ष्यों के साथ भी जोड़ा जा सकता है।”

गुप्ता की टीम ने दिखाया कि मोर्टार में प्राकृतिक रेत की जगह कार्बन डाइऑक्साइड– उपचारित सीएंडडी कचरे का प्रयोग कर और फिर इसे नियंत्रित कर, CO2– समृद्ध वातावरण में डाल कर सामग्री के इंजीनियरिंग गुणों को बढ़ाया जा सकता है और इसकी संपीड़न शक्ति में 20-22% तक की बढ़ोतरी की जा सकती है। उनकी प्रयोगशाला ने चिकनी मिट्टी– जो आम तौर पर निर्माण स्थलों पर की गई खुदाई में निकलती है, में कार्बन डाइऑक्साइड गैस डालने के प्रभाव का भी परीक्षण किया है। इसके परिणामस्वरूप सीमेंट और चूने द्वारा मिट्टी का बेहतर स्थिरीकरण हुआ और मिट्टी में मिट्टी का सतह क्षेत्र, छिद्र मात्रा और चूने की प्रतिक्रिया कम हो गई, जिससे सामग्री के थोक इंजीनियरिंग प्रदर्शन में सुधार हुआ।

हाल में किए गए एक और अध्ययन के अनुसार, गुप्ता की टीम ने यह देखने के लिए पड़ताल की कि क्या होता है जब सीमेंट– चूना– मिट्टी की सामग्री बनाने के लिए खुदाई की गई मिट्टी में कार्बन डाइऑक्साइड को अलग किया जाता है जिसका प्रयोग मोर्टार में द्रव्यमान के हिसाब से  25% और 50% तक महीन समूह को बदलने के लिए किया जाता है। सीएसटी से पीएचडी कर रहे और प्रथम लेखक आशुतोष द्विवेदी बताते हैं, “जब आप सीमेंट– मिट्टी की सामग्री में कार्बन डाइऑक्साइड को अलग करते हैं, तो कैल्शियम कार्बोनेट के छोटे क्रिस्टल बनते हैं, जो मध्यम केशिका छिद्रों के अंश को कम करते हैं, इंटरफेसियल क्षेत्रों को सघन बनाते हैं और इस प्रकार संपीड़न शक्ति में सुधार करते हैं।” टीम ने पाया कि सीमेंट– चूना– मिट्टी के ब्लॉक को कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क में लाने से उनकी कम उम्र की मजबूती में लगभग 30% की वृद्धि हुई। गुप्ता बताते हैं कि तैयारी के बाद कार्बन डाइऑक्साइड के संपर्क में आने से उनके सख्त होने का समय– निर्माण में प्रयोग किए जाने से पहले उन्हें सख्त होने में लगने वाला समय, भी कम हो जाता है।


(बाएं से दाएं) प्रभात रंजन कुमार, सहान सीएम और सौरदीप गुप्ता विकसित सामग्रियों की रियोलॉजी जांच पर काम करते हुए (चित्र: MatERIAL ग्रुप, सीएसटी, आईआईएससी)

टीम ने पोर्टलैंड सीमेंट, ब्लास्ट फर्नेस स्लैग (दानेदार कैल्शियम– सिलिकेट उपोत्पाद) और फ्लाई ऐश जैसे बाइंडरों के संयोजन से आकार दी गई खुदाई की मिट्टी से बनी 3डी– प्रिंटेबल सामग्री भी विकसित की है। उन्होंने पाया कि उत्खनित मिट्टी में गैर– विस्तारशील मिट्टी एक उत्कृष्ट गाढ़ा करने वाले एजेंट (रियोलॉजिकल संशोधक) के रूप में काम करती है और परंपरागत सीमेंट– रेत मोर्टार की तुलना में सामग्री को बेहतर विस्तार और निर्माणक्षमता प्रदर्शित करने का कारण बनती है। उन्होंने पाया कि इन सामग्रियों का प्रयोग कर मोर्टार में आवश्यक सीमेंट और प्राकृतिक रेत की मात्रा को क्रमशः 30% और 50% तक कम किया जा सकता है।

अब टीम की योजना औद्योगिक और नकली फ्लू गैस के प्रभाव की जांच करने की है। इसमें कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य गैसों का संयोजन होता है– इन नए तैयार किए गए पदार्थों के सूक्ष्म और स्थूल गुणों पर। इससे उन्हें यह समझने में मदद मिलेगी कि क्या उद्योगों द्वारा उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा अन्य गैसें सामग्रियों की कार्बन– ग्रहण क्षमता और इंजीनियरिंग गुणों को प्रभावित करती हैं।

टीम ने इन निष्कर्ष, को अपने विनिर्माण संयंत्रों में लागू करने के लिए कुछ प्रमुख निर्माण कंपनियों से बातचीत कर रही है। गुप्ता वर्तमान में सीमेंट– आधारित निर्माण सामग्री में प्राकृतिक और पुनर्चक्रित समुच्चयों के मानकों को संशोधित करने पर काम कर रही एक राष्ट्रीय समिति का भी हिस्सा हैं।

 वे कहते हैं, “निर्माण सामग्री के जलवायु परिवर्तन प्रभाव, बढ़ते CO2  उत्सर्जन और रेत की कमी के कारण हर साल बढ़ रहे हैं।” “प्राकृतिक रेत के विकल्प खोजना समय की मांग है।”

MatERIAL ग्रुप प्रयोगशाला के सदस्य (नीचे से बाएं से दाएं) आशुतोष द्विवेदी, पितबाश साहू, प्रभात रंजन कुमार, सहान सीएम और सौरदीप गुप्ता (बीच में) एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग का प्रयोग कर निर्मित विकसित कार्बन पृथक निर्माण सामग्री के साथ (चित्र: MatERIAL ग्रुप, सीएसटी, आईआईएससी)