सिंथेटिक एंटीबॉडी ने जानलेवा सांप के विष को बेअसर किया
स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट और भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के पारिस्थितिकी विज्ञान केंद्र (ईवीएल/EVL) के इवोल्यूशनरी वेनोमिक्स लैब (ईवीएल) के वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम मानव एंटीबॉडी विकसित की है, जो अत्यधिक ज़हरीले सांपों के एलापिडे परिवार– जिसमें कोबरा, किंग कोबरा, क्रेट और ब्लैक माम्बा आते हैं, द्वारा उत्पादित एक शक्तिशाली न्यूरोटॉक्सिन को बेअसर कर सकती है।
टीम ने नए विष– निष्प्रभावी एंटीबॉडी को संश्लेषित करने हेतु एचआईवी और कोविड- 19 के खिलाफ एंटीबॉडी की जांच के पहले इस्तेमाल किए गए पद्धति को अपनाया। ईवीएल, सीईएस में पीएचडी छात्र एवं साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन की सह– प्रथम लेखक सेनजी लक्ष्मी आरआर कहते हैं “यह पहली बार है कि सांप के काटने के इलाज के लिए एंटीबॉडी तैयार करने हेतु इस विशेष रणनीति को लागू किया जा रहा है।”
शोधकर्ताओं का कहना है कि यह विकास हमें सार्वभौमिक एंटीबॉडी समाधान के एक कदम और करीब ले जाता है जो विभिन्न प्रकार के सांपों के जहर के प्रति व्यापक सुरक्षा प्रदान कर सकता है।
सांप के काटने से हर साल हज़ारों लोगों की मौत होती है, खास तौर पर भारत और उप– सहारा अफ्रीका क्षेत्र में। एंटीवेनम तैयार करने की वर्तमान रणनीति में घोड़ों, टट्टुओं एवं खच्चरों जैसे घोड़ों में सांप का जहर डालना और उनके खून से एंटीबॉडी इक्ट्ठा करना शामिल है। लेकिन इसमें कई प्रकार की समस्याएं हैं।
सीईएस में एसोसिएट प्रोफेसर और अध्ययन के संयुक्त संवाददाता लेखक कार्तिक सुनगर बताते हैं, “ये जानवर अपने जीवकाल में अलग– अलग बैक्टीरिया और वायरस के संपर्क में आते हैं। इसके कारण, एंटीवेनम में सूक्ष्मजीवों के खिलाफ एंटीबॉडी भी शामिल हैं जो चिकित्सीय रूप से अनावश्यक हैं। शोध से पता चला है कि एंटीवेनम की एक शीशी के 10% से भी कम में वास्तव में ऐसे एंटीबॉडी होते हैं जो सांप के ज़हर के विषाक्त पदार्थों के प्रति लक्षित होते हैं।”
टीम द्वारा तैयार एंटीबॉडी एलापिड विष में थ्री– फिंगर विष (3FTx) नामक एक प्रमुख विष के केंद्र में पाए जाने वाले संरक्षित क्षेत्र को लक्षित करती है। हालांकि एलापिड की विभिन्न प्रजातियां अलग– अलग 3FTxs बनाती हैं लेकिन प्रोटीन में कुछ क्षेत्र एक जैसे हैं। टीम ने ऐसे ही एक संरक्षित क्षेत्र– डाइसल्फाइड कोर पर ध्यान लगाया। उन्होंने इंसानों से कृत्रिम एंटीबॉडी की एक बड़ी लाइब्रेरी तैयार की, जिसे यीस्ट सेल के सतहों पर प्रदर्शित किया गया। फिर उन्होंने विश्व भर अलग– अलग एलापिड सांपों से 3FTxs को बांधने की एंटीबॉडी की क्षमता पर परीक्षण किया। बार– बार जांच करने के बाद, उन्होंने अपने विकल्पों को एक एंटीबॉडी तक सीमित कर दिया जो अलग– अलग 3FTxs से मजबूती से बंध सकता था। सार्वजनिक रिपॉजिटरी में 3FTxs के 149 प्रकारों में से यह एंटीबॉडी 99 से बंध सकता था।
इसके बाद शोधकर्ताओं ने अपने एंटीबॉडी का परीक्षण पशु मॉडल पर किया। प्रयोगों के एक सेट में, उन्होंने सिंथेटिक एंटीबॉडी को ताइवानी बैंडेड क्रेट द्वारा उत्पादित विषैले 3FTx के साथ पहले मिलाया और फिर इसे चूहों में डाला। केवल विष दिए जाने वाले चूहे चार घंटे में ही मर गए लेकिन जिन चूहों को विष– एंटीबॉडी मिला कर दिया गया, वे 24- घंटे की अवलोकन अवधि से अधिक जीवित रहे और पूरी तरह से ठीक दिखे।
टीम ने पूर्वी भारत के मोनोक्लेड कोबरा और उप– सहारा अफ्रीका के ब्लैक माम्बा के पूरे ज़हर के खिलाफ भी अपने एंटीबॉडी का परीक्षण किया और समान परिणाम पाए। एंटीबॉडी की प्रभावकारिता परंपरागत उत्पाद की तुलना में लगभग 15 गुना अधिक पाई गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब उन्होंने पहले ज़हर का इंजेक्शन लगाया और फिर कुछ समय की देरी – 10 मिनट और 20 मिनट– से एंटीबॉडी दी, तब भी ये एंटीबॉडी चूहों को बचाने में सक्षम थे। हालांकि, परंपरागत उत्पाद केवल विष के साथ इंजेक्शन लगाने पर ही अच्छी तरह से काम करते थे। 10 मिनट की देरी से भी परंपरागत एंटीवेनम की शक्ति में काफी कमी आ जाती है।
इसके अलावा, टीम ने विष– एंटीबॉडी कॉम्प्लेक्स की क्रिस्टल संरचना को जानने के लिए क्रायो– ईएम (cryo-EM) का प्रयोग किया और पाया कि उनका बंधन विष और मांसपेशियों एवं तंत्रिका कोशिकाओं में पाए जाने वाले रिसेप्टर्स के बीच बंधन के समान था। सुनगर कहते हैं, “हमारा एंटीबॉडी हमारे शरीर में रिसेप्टर के विष– बंधन स्थल की नकल करता लगता है। इसलिए, विष रिसेप्टर की बजाए हमारे एंटीबॉडी से जुड़ रहे हैं। चूंकि हमारा एंटीबॉडी देर से लगाए जाने के बाद भी विष को बेअसर कर देता है इसलिए यह संकेत दे सकता है कि रिसेप्टर्स से बंधे ज़हरीले पदार्थों को विस्थापित कर सकते हैं।”
शोधकर्ताओं ने एंटीबॉडी बनाने के लिए मानव– व्युत्पन्न सेल लाइनों का प्रयोग किया, जिससे घोड़ों जैसे जानवरों में पहले विष डालने की आवश्यकता नहीं रह गई। लक्ष्मी आगे कहते हैं, “चूंकी एंटीबॉडी पूरी तरह से मनुष्यों से बनाएं गए हैं, इसलिए हमें किसी भी ऑफ– टारगेट या एलर्जिक प्रतिक्रिया की आशा नहीं है।”
सुनगर कहते हैं, “इससे एक ही साथ दो समस्याएं हल हो जाती हैं। सबसे पहले, यह पूरी तरह से मानव एंटॉबॉडी है और इसलिए घातक एनाफिलैक्सिस समेत दुष्प्रभावों, कभी– कभी परंपरागत एंटीवेनम से इलाज किए जा रहे मरीजों में दिखता है, को रोका जा सकता है। दूसरे, इसका अर्थ यह होगा कि भविष्य में इस जीवन रक्षक एंटीडॉट को बनाने के लिए जानवरों को नुकसान पहुंचाने की जरूरत नहीं होगी।”
इसी पद्धति का प्रयोग दूसरे सांपों के ज़हर के एंटीबॉडी तैयार करने के लिए भी किया जा सकता है जिसे फिर एक एकल एंटीवेनम थेरेपी में शामिल किया जा सकता है। इसे नैदानिक परीक्षणों में आगे ले जाने पर सुनागर कहते हैं, “इस स्तर पर, एक चिकित्सक उपचार के लिए एक एकल एंटीबॉडी पर विश्वास नहीं कर सकता क्योंकि यह केवल कुछ एलापिड सांपों के ज़हर पर ही प्रबावी है। हम दूसरे सांपों के ज़हर लक्ष्यों के विरुद्ध अतिरिक्त एंटीबॉडी की खोज करने की प्रक्रिया में हैं। आने वाले समय के सार्वभौमिक एंटीवेनम में कुछ ऐसे सिंथेटिक एंटीबॉडी होंगे जो, आशा है कि, विश्व के अलग– अलग हिस्सों में ज्यादातर सांपों के ज़हर को बेअसर कर देंगे। एक सार्वभौमिक उत्पाद या कम– से– कम एंटीबॉडी का एक कॉकटेल जो पूरे भारत में काम करता है फिर मानव नैदानिक परीक्षणों के लिए ले जाया जा सकता है।”