भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) और जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर/JNCASR) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित पेपर– आधारित प्लेटफॉर्म एंटीबायोटिक– प्रतिरोधी रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया के होने का शीघ्र पता लगाने में मदद कर सकता है।
मानव जाति की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया का बढ़ना जो एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी हैं। एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग एवं अत्यधिक प्रयोग ने उनके उगने को प्रेरित किया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ऐसे कुछ बैक्टीरिया हैं जिनमें ई– कोलाई और स्टैफिलोकोकस ऑरियस शामिल हैं– ने, दस लाख से ज्यादा लोगों की जान ले ली है और आने वाले वर्षों में इनके कारण होने वाली मौत की संख्या बढ़ने का ही अनुमान है । समय पर रोग का पता चलने से उपचार की दक्षता में सुधार हो सकता है।
“आम–तौर पर डॉक्टर मरीज के रोग का पता लगाता है और उसे दवाएं देता है। दवा काम कर रही है या नहीं इसका पता मरीज को 2-3 दिनों के बाद ही चल पाता है और वो फिर से डॉक्टर के पास जाता है। आईआईएससी (IISc) के ऑर्गेनिक केमेस्ट्री विभाग के प्रोफेसर उदय मित्रा का कहना है कि “यहां तक की खून या मूत्र जांच से भी यह पता लगाने में समय लग जाता है कि बैक्टीरिया एंटीबायोटिक– प्रतिरोधी है या नहीं। हम रोग का पता लगाने में लगने वाले समय को कम करना चाहते थे।
एसीएस सेंसर्स (ACS Sensors) में प्रकाशित एक शोधपत्र में मित्रा की प्रयोगशाला और सहयोगियों ने इस चुनौती को पूरा किया। उन्होंने एक त्वरित निदान प्रोटोकॉल विकसित किया है जो एंटीबायोटिक– प्रतिरोधी बैक्टीरिया की उपस्थिति का पता लगाने के लिए ल्यूमिनसेंट पेपर– आधारित प्लेटफॉर्म का प्रयोग करता है।
ऐसे कई तरीके हैं जिनसे बैक्टीरिया एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी बन जाता है। एक में, बैक्टीरिया विकसित होता है और अपनी कोशिका से दवा को पहचान कर बाहर निकाल सकता है। दूसरे में, बैक्टीरिया बीटा– लैक्टामेज़ (β-lactamase) नाम का एक एंजाइम का उत्पादन करता है जो बीटा– लैक्टम रिंग (β-lactam ring) जो पेनिसिलिन और कार्बापेनम जैसे आम एंटीबायोटिक दवाओं का एक प्रमुख संरचनात्मक घटक है– जिससे दवा का असर नहीं होता।
एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी बैक्टीरिया का पता लगाने/भेद करने का योजनाबद्ध चित्रण (चित्र: अर्नब दत्ता)
आईआईएससी (IISc) और जेएनसीएएसआर (JNCASR) टीम द्वारा विकसित पद्धति में टेरबियम कोलेट (टीबीसीएच) युक्त सुपरमॉलेक्यूलर हाइड्रोजेल मैट्रिक्स के भीतर बाइफिनाइल–4- कार्बोक्सिलिक एसिड (बीसीए) को शामिल करना शामिल है। जब इस हाइड्रोजेल पर यूवी (अल्ट्रा वॉयलेट) प्रकाश डाला जाता है तो आमतौर पर यह हरे रंग का प्रतिदीप्ति उत्सर्जित करता है।
आईआईएससी के ऑर्गेनिक केमिस्ट्री विभाग में पीएचडी छात्र और शोधपत्र के प्रमुख लेखक अर्नब दत्ता बताते हैं कि “ प्रयोगशाला में, हमने बीसीए को चक्रीय [β-लैक्टम] रिंग से जोड़कर एक एंजाइम– सब्सट्रेट का संश्लेषण किया जो एंटीबायोटिक का एक हिस्सा है। जब आप इसे टीबीसीएच हाइड्रोजेल के साथ मिलाते हैं तो हरे रंग का कोई उत्सर्जन नहीं होता है क्योंकि सेंसिटाइज़र ‘छिप,’ जाता है।” “β-लैक्टामेज एंजाइम की उपस्थिति में, जेल हरे रंग का उत्सर्जन करेगा। बैक्टीरिया में मैजूद β-लैक्टामेज एंजाइम वह है जो दवा को काटता है, बर्बाद करता है और सेंसिटाइज़र बीसीए को सामने ले आता है। इसलिए, β- लैक्टामेज की उपस्थिति का संकेत हरे रंग के उत्सर्जन से मिलता है।” ल्यूमिनेसेंस एंटीबायोटिक– प्रतिरोधी बैक्टीरिया की उपस्थिति का संकेत देता है और ल्यूमिनेसेंस की तीव्रता बैक्टीरिया के भार को इंगित करती है। गैर– प्रतिरोधी बैक्टीरिया के लिए, हरे रंग की तीव्रता बहुत कम पाई गई, जिससे उन्हें प्रतिरोधी बैक्टीरिया से अलग करना सरल हो गया।
अगला कदम तकनीक को सस्ता बनाने का तरीका खोजना था। वर्तमान में इस्तेमाल किए जाने वाले निदान उपकरण महंगे हैं, जिससे जांच कराने का खर्च बढ़ जाता है।
टीम ने तमिलनाडु की एक कंपनी एडिउवो डायग्नोस्टिक्स के साथ मिलकर एक अनुकूलित, वहनीय और आकार में छोटी इमेजिंग उपकरण का डिजाइन बनाया जिसका नाम इल्यूमिनेट फ्लोरोसेंस रीडर है। हाइड्रोजेल को माध्यम के रूप में कागज़ के टुकड़े में डालने से लागत बहुत कम हो गई। इस उपकरण में अलग– अलग एलईडी लगे हैं जो आवश्यकतानुसार अल्ट्रावायलेट विकिरण चमकाते हैं। एंजाइम से निकलने वाली हरी प्रतिदीप्ति को एक अंतर्निर्मित कैमरे द्वारा कैप्चर किया जाता है और एक समर्पित सॉफ्टवेयर ऐप तीव्रता को मापता है जो बैक्टीरिया के भार को मापने में मदद कर सकता है।
आईआईएससी(IISc) की टीम ने मूत्र के नमीनों पर अपनी कार्यपद्धति की जांच करने के लिए जेएनसीएएसआर (JNCASR) के जयंत हलधर के शोध समूह के साथ गठबंधन किया। मित्रा बताते हैं कि “हमने स्वस्थ स्वयंसेवकों के नमूनों का इस्तेमाल किया और मूत्र पथ के संक्रमण की नकल करने हेतु रोगजनक बैक्टीरिया को जोड़ा। इसने दो गंटे के भीतर सफलतापूर्वक परिणाम प्राप्त किया।”
अगले कदम के रूप में, शोधकर्ताओं ने मरीजों के नमूनों के साथ इस तकनीक का परीक्षण करने के लिए अस्पतालों के साथ गठबंधन करने की योजना बनाई है।